संसद के प्रत्येक सदन को राष्ट्रपति समय-समय पर समन जारी करके आहूत (सभा में उपस्थित होने का आदेश) करता है।
संसद के दोनों सत्रों के बीच अधिकतम अंतराल 6 माह से ज्यादा का नहीं होना चाहिए अर्थात संसद के सत्र वर्ष में कम से कम दो बार होने चाहिए।
सामान्यतौर पर वर्ष में संसद के तीन सत्र होते हैं -
बजट सत्र (फरवरी से मई)।
मानसून सत्र (जुलाई से सितम्बर)।
शीतकालीन सत्र (नवम्बर से दिसम्बर)।
संसद का सत्र,पहली बैठक एवं सत्रावसान के बीच की अवधि है।
एक सत्र के सत्रावसान एवं दूसरे सत्र के प्रारम्भ होने के बीच की अवधि को अवकाश कहते हैं।
संसद की बैठक का स्थगन :-
संसद के एक सत्र में काफी बैठकें होती हैं तथा प्रत्येक बैठक में दो सत्र होते हैं पहला सुबह 11 बजे से 1 बजे तक एवं दूसरा दोपहर 2 बजे से 6 बजे तक।
संसद की बैठक को स्थगन द्वारा कुछ घंटे, दिन, या सप्ताह के लिए निलंबित किया जा सकता है।
अनिश्चितकाल के लिए स्थगत :-
जब सदन को बिना यह बताये स्थगित किया जाता है कि उसे अब किस दिन आहूत किया जायेगा तो इसे अनिश्चितकाल के लिए स्थगत कहते हैं।
अनिश्चितकाल के लिए स्थगत कि शक्ति लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति को होती है।
सत्रावसान :-
पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष या सभापति) सत्र पूर्ण होने पर सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करता है। इसके कुछ दिनों में ही राष्ट्रपति सदन सत्रावसान की अधिसूचना जारी करता है।
राष्ट्रपति सत्र के दौरान भी सत्रावसान कर सकता है।
सदन का विघटन :-
राज्यसभा का विघटन नहीं होता क्यूंकि स्थायी सदन है केवल लोकसभा का विघटन होता है। सदन के विघटन का तात्पर्य सदन का जीवनकाल समाप्त हो जाना एवं सदन का पुनर्गठन अब नए चुनाव के बाद ही होगा।
लोकसभा को निम्न दो कारणों से विघटित किया जा सकता है -
स्वयं विघटित - जब लोकसभा का पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा हो जाये।
राष्ट्रपति द्वारा विघटित करने का निर्णय लिया गया हो।
लोकसभा के विघटित होने पर इसके सभी कार्य समाप्त हो जाते हैं जैसे विधेयक, प्रस्ताव, संकल्प नोटिस, याचिका आदि। एवं इनको नवगठित लोकसभा में दोबारा लाना जरुरी है।
जिन लंबित विधेयकों एवं आश्वासनों की जांच सरकारी आश्वासन सम्बन्धी समिति द्वारा की जानी होती है, लोकसभा के विघटन होने पर समाप्त नहीं होते।
लोकसभा के विघटन पर विधेयकों की स्थिति :-
लोकसभा में विचाराधीन विधेयक (चाहे लोकसभा में रखे गए हों या राज्यसभा द्वारा लोकसभा में हस्तांतरित हुए हों)।
लोकसभा में पारित लेकिन राज्यसभा में विचाराधीन विधेयक। समाप्त हो जाता है।
ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों में असहमति के कारण पारित न हुआ हो तथा राष्ट्रपति ने विघटन होने से पूर्व दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई हो। समाप्त नहीं होता है।
ऐसा विधेयक जो राज्यसभा में विचाराधीन हो लेकिन लोकसभा द्वारा पारित न हुआ हो समाप्त नहीं होता है।
ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा पारित हुआ हो एवं राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए विचाराधीन हो। समाप्त नहीं होता है।
ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा पारित हो लेकिन राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटा दिया गया हो समाप्त नहीं होता है।
गणपूर्ति (कोरम) :-
सदन की कार्यवाही के लिए सदन में उपस्थित सदस्यों की न्यूनतम संख्या को गणपूर्ति या कोरम कहते हैं। प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्यों का दसवां हिस्सा कोरम होता है। अर्थात सदन की कार्यवाही के लिए लोकसभा में कम से कम 55 सदस्य एवं राज्यसभा में 25 सदस्य अवश्य होने चाहिए।
यदि सदन का कोरम पूरा नहीं होता तब अध्यक्ष या सभापति का दायित्व है वह या तो सदन को स्थगित कर दे या कोरम जब तक पूरा न हो कार्य संपन्न न करे।
सदन में मतदान :-
सभी मामलों में सदन में या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से निर्णय लिया जाता है।
संविधान में वर्णित कुछ विशिष्ट मामलों में जैसे राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग, संविधान संसोधन,पीठासीन अधिकारीयों को हटाना, आदि में विशेष बहुमत की जरुरत होती है।
सदन का पीठासीन अधिकारी केवल मत बराबरी होने पर ही निर्णणायक मत देता है।
संसद की भाषा :-
संविधान ने हिंदी एवं अंग्रेजी को सदन की कार्यवाही की भाषा घोषित किया है। हालाँकि पीठासीन अधिकारी किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में बोलने का अधिकार दे सकता है। एवं दोनों ही सदनों में अनुवाद की व्यवस्था है।