भारतीय संविधान ने केंद्र के सामान राज्य में भी संसदीय व्यवस्था की स्थापना करता है।
राज्य की राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था का वास्तविक कार्यकारी अधिकारी मंत्रिपरिषद होती है एवं इसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है।
राज्य मंत्रिपरिषद का कार्य केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सामान ही होता है।
मंत्रियों की नियुक्ति :-
मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री के परामर्श से करेगा।
सामान्यतः उसी व्यक्ति को मंत्री नियुक्त किया जाता है जो विधानसभा या विधानपरिषद में से किसी एक का सदस्य हो।
कोई व्यक्ति यदि विधानमंडल का सदस्य नहीं है तो उसे मंत्री नियुक्त किया जा सकता है लेकिन 6 माह के अंदर उसको विधानमंडल की सदस्य्ता लेना अनिवार्य है अन्यथा वह मंत्री नहीं रहेगा।
एक मंत्री जो विधानमंडल के किसी एक सदन का सदस्य है, को दूसरे सदन की कार्यवाही में भाग लेने व बोलने का अधिकार है लेकिन मतदान उसी सदन में कर सकता है जिसका वह सदस्य है।
मंत्रियों की शपथ एवं वेतन :-
सभी मंत्री पद ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल के सम्मुख पद एवं गोपनीयता की शपथ लेते हैं।
मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते राज्य विधानमंडल द्वारा समय-समय पर तय किया जाता है।
मंत्रियों को पद के अनुरूप व्यय भत्ता, निःशुल्क आवास, यात्रा भत्ता, चिकित्सा भत्ता, आदि मिलता है।
मंत्रियों का सामूहिक उत्तरदायित्व :-
अनुच्छेद 164 के अनुसार मंत्रिपरिषद, राज्य विधानसभा के पार्टी सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी अर्थात सभी मंत्री अपने क्रियाकल्पों के लिए विधानसभा के प्रति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होंगे।
यदि विधानसभा मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर देती है तो सभी मंत्रियों (विधानपरिषद के मंत्री शामिल) त्यागपत्र देना पड़ता है।
सामूहिक उत्तरदायित्व का यह भी मतलब है कि कैबिनेट के फैसले के प्रति सभी मंत्री प्रतिबद्ध हैं और सभी मंत्रियों का कर्तव्य है कि विधानमंडल के अंदर व बाहर कैबिनेट के निर्णय का समर्थन करें।
यदि कोई मंत्री कैबिनेट के फैसले से असहमत है तो उसे त्यागपत्र दे देना चाहिए। जैसे पूर्व में कैबिनेट के फैसले से असहमति रखने वाले कई मंत्री त्यागपत्र दे चुके हैं।