- कुषाणों एवं सातवाहनों के बाद भारत में गुप्त वंश का शासन स्थापित हुआ, गुप्त लोग कुषाणों के सामंत थे लेकिन बाद में उनके उत्तरधिकारी बन गए।
- गुप्त वंश का प्रसिद्ध शासक चन्द्रगुप्त प्रथम (319-334 ईस्वी) हुआ, इसने 319-20 ईस्वी में अपने राज्यरोहण के स्मारक के रूप में गुप्त संवत चलाया।
- चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी से विवाह किया जो नेपाल की थी। इस विवाह से उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी क्यूंकि गुप्त वैश्य थे और क्षत्रिय वंश में विवाह किया था।
- चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी इसका पुत्र समुद्रगुप्त (335-380 ईस्वी) हुआ।
- समुद्रगुत की नीति अशोक के विपरीत थी, अशोक जहाँ शांति एवं अनाक्रमण की नीति में विश्वास करता था वहीँ समुद्रगुप्त को हिंसा एवं युद्ध विजय में आनंद आता था।
- समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिषेण ने इसके पराक्रम का उदात्त वर्णन किया है एवं लम्बे अभिलेख द्वारा बताया है की समुद्रगुप्त ने किन लोगों एवं देशों पर विजय प्राप्त की।
- हरिषेण द्वारा वर्णित यह अभिलेख इलाहबाद (प्रयाग) में उसी स्तम्भ में खुदा हुआ है जिसमें अशोक का अभिलेख है।
- समुद्रगुप्त द्वारा जीते गए क्षेत्रों को पांच समूह में बांटा जा सकता है- प्रथम समूह में गंगा-यमुना दोआब के शासकों को पराजित करके उनके राज्य को गुप्त साम्राज्य का भाग बनाया, द्वितीय समूह में पूर्वी हिमालय एवं सीमावर्ती राज्यों के शासकों जैसे असम,नेपाल,बंगाल को पराजित किया, तृतीय समूह में आटविक राज्य (जंगली क्षेत्रों के राज्य) थे जो विंध्य क्षेत्र में अवस्थित थे, चतुर्थ समूह में पूर्वी दक्कन एवं दक्षिण भारत के 12 शासकों एवं कांची के पल्लवों को हराया, पांचवें समूह में शकों एवं कुषाणों को हराया।
- इलाहबाद प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त को कभी भी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा, इसलिए इस बहादुरी एवं युद्ध कौशल के कारण समुद्रगुप्त भारत का नेपोलियन कहा गया है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-412 ईस्वी) के काल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर था, इसने वैवाहिक संबंधों एवं विजय अभियान के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
- चन्द्रगुप्त द्वतीय ने अपनी कन्या प्रभावती का विवाह वाकाटक राजा से किया जो मध्य भारत में शासन करता था एवं ब्राम्हण जाति का था।
- वाकाटक राजा की मृत्यु के बाद प्रभावती मध्य भारत की सत्ता पर वास्तविक शासिका बन गयी जिसका फयदा चन्द्रगुप्त द्वितीय को हुआ। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने मध्य भारत से पश्चिम मालवा एवं गुजरात को भी अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया।
- गुजरात की विजय के बाद पश्चिमी समुद्र तट के व्यापार वाणिज्य से होने वाले लाभ से मालवा एवं उज्जैन समृद्ध होने लगे।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उज्जैन को दूसरी राजधानी बनाया।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की एवं सबसे प्रसिद्ध विक्रमादित्य हुआ।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के उज्जैन स्थित दरबार में कालिदास एवं अमरसिंह जैसे बड़े विद्वान थे।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल में चीनी यात्री फाहियान भारत आया एवं यहाँ के लोगों का विस्तृत विवरण लिखा।
गुप्तकाल का प्रशासन :-
- गुप्तकाल में राजा आडम्बरपूर्ण उपाधियाँ धारण करते थे जैसे परमेश्वर, महाराजाधिराज, परमभट्टारक आदि।
- इस काल में राजा का पद वंशानुगत नहीं था एवं ज्येष्ठ पुत्र के उत्तराधिकार की प्रथा का प्रचलन नहीं हुआ था जिससे इसका लाभ सामंत या उच्चाधिकारी उठा सकते थे।
- गुप्तकाल में राजा को प्रजा की रक्षा एवं पालन करने वाले भगवान् विष्णु के रूप में देखा जाता था।
- गुप्त शासक ब्राम्हणों को उदारतापूर्वक दान देते थे बदले में ब्राम्हण राजा की तुलना विभिन्न देवताओं करके राजा के प्रति अपना आभार प्रकट करते थे।
- गुप्त काल में राजा के पास स्थायी सेना होती थी तथा सामंतों द्वारा भी आवश्यकता पड़ने पर सेना उपलब्ध कराई जाती थी।
- इस काल में अश्वचालित रथ की तुलना में घुड़सवार सैनिकों की महत्ता बढ़ गयी थी एवं सैनिक घोड़े पर सवार होकर तीर चलाते थे।
- इस काल में भूमि सम्बन्धी करों में वृद्धि कर दिया गया तथा वाणिज्य करों में कमी कर दिया गया। राज्य उपज का चौथे से लेकर छठे भाग तक कर लेता था।
- यदि किसी गाँव से गुप्त शासक की सेना गुजरती तो सेना के खाने पीने का ख्याल ग्रामवासियों को रखना होता था।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले राजकीय अधिकारी अपनी जरुरत का सामान ग्रामीणों से लेते थे।
- गुप्त काल में मध्य एवं पश्चिम भारत में ग्रामीणों से सरकारी अधिकारीयों की सेवा के लिए बेगार भी करवाया जाता था यह विष्टि कहलाता है।
गुप्तकाल की न्याय व्यवस्था :-
- पूर्व काल की तुलना में गुप्त काल में न्याय पद्धति ज्यादा विकसित थी। इस काल में विधि ग्रंथों का संकलन किया गया तथा दीवानी एवं फौजदारी कानूनों को भलीभांति परिभाषित करके इनका पृथक्करण किया गया।
- फौजदारी क़ानून के अंतर्गत चोरी एवं व्यभिचार को शामिल किया गया जबकि दीवानी क़ानून में संपत्ति सम्बन्धी विवाद एवं उत्तराधिकार सम्बन्धी नियमों को शामिल किया गया।
- गुप्तकाल में राजा नियम एवं क़ानून बनाता था एवं न्याय निर्णयन करता था और इस कार्य में ब्राम्हणों की सहायता लेता था।
- गुप्तकाल में शिल्पियों एवं वणिकों के अपने संगठन होते थे, ये संगठन श्रेणी कहलाते थे एवं इनमें श्रेणी के नियम ही लागू होते थे।
- गुप्तकाल में बहुत सारे नियमों का आधार वर्णभेद रहा।
गुप्तकाल में अधिकारी वर्ग :-
- गुप्त काल में अधिकारी वर्ग मौर्य काल की तुलना में कम थे क्यूंकि प्रशासन के बहुत सारे कार्य सामंतों एवं अनुदान भोगियों के हाथों संपन्न हो जाते थे एवं गुप्त साम्राज्य मौर्यों के समान व्यापक आर्थिक क्रियाकलापों से सम्बद्ध नहीं था।
- गुप्त साम्राज्य के सबसे बड़े अधिकारी कुमारामात्य थे एवं राजा इनकी नियुक्ति प्रांतों में करता था तथा कुमारामात्य नगद वेतन पाते थे।
- गुप्त काल में प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति उच्च वर्णों तक सीमित नहीं थी तथा अनेक पदों का प्रभार एक व्यक्ति को दिया जाता था। पद वंशानुगत कर दिए गए थे।
गुप्तकाल में प्रांतीय एवं स्थानीय शासन :-
- गुप्त शासकों ने राज्य को कई प्रांतों में बाँट दिया था ये प्रान्त भुक्ति कहलाते थे। भुक्ति का अधिकारी उपरिक कहलाता था।
- इन प्रांतों/भुक्तियों का विभाजन जिलों में कर दिया गया, ये जिले विषय कहलाते थे। विषय का अधिकारी विषयपति होता था।
- इन विषय/जिलों का विभाजन वीथियों में किया गया तथा वीथियों को ग्रामों में विभाजित किया गया।
- छोटे शहरों एवं ग्रामों के प्रशासन से स्थानीय लोग भी सम्बद्ध होते थे तथा स्थानीय लोगों की अनुमति के बगैर गुप्तकाल में जमीन की खरीद बिक्री नहीं हो सकती थी।
गुप्तकाल कला :-
- गुप्त शासक समुद्रगुप्त एवं चन्द्रगुप्त द्वितीय कला एवं साहित्य के सम्पोषक थे, इन्होने अपनी आय का कुछ भाग कला एवं साहित्य में लगे लोगों के भरण पोषण में लगाया।
- गुप्तकाल में पत्थर के स्तम्भ बनाये गए तथा चट्टानों को काटकर गुफाएं बनायीं गयीं।
- मिटटी एवं ईटों से बुद्ध सम्बन्धी अवशेषों पर गोलाकार स्तूपों का निर्माण किया गया।
- गुप्तकाल में ही सारनाथ एवं मथुरा में बुद्ध की सुन्दर प्रतिमाओं का निर्माण किया गया।
- गुप्तकाल की सर्वश्रेष्ठ कला का नमूना अजंता की चित्रावली है, इसमें पहली सदी से लेकर पांचवीं सदी तक के चित्र हैं। इन चित्रों में गौतम बुद्ध के पिछले जन्मों की विभिन्न घटनाओं का चित्रण किया गया है तथा 1400 वर्षों के बाद भी इन चित्रों की चमक में कोई अंतर नहीं आया।
- गुप्त शासक हिन्दू धर्म के पोषक थे इसलिए गुप्त काल में पहली बार विष्णु, शिव एवं अन्य देवताओं की प्रतिमा मिलती है।
- गुप्तकाल में कई स्थानों पर सम्पूर्ण देवमंडल भी मिलता है जिसमें मुख्य देवता के चारों और गौण देवता भी विराजमान है। मुख्य देवता का आकर बड़ा है जबकि अन्य देवताओं का आकार छोटा है। इससे सामाजिक विभेद एवं श्रेणीबद्धता का संकेत मिलता है ।
- नालंदा का बौद्ध महाविहार पांचवी सदी में बना लेकिन इसकी ईंट की पहली संरचना गुप्तकाल की है।
गुप्तकाल में साहित्य :-
- गुप्तकाल मुख्य रूप से लौकिक साहित्य की सर्जना के लिए जाना जाता है। हालांकि धार्मिक साहित्य रचना में भी प्रगति इस काल में दिखाई देती है।
- गुप्तकाल में जैसे जैसे आगे की और जाते हैं गद्य की अपेक्षा पद्य पर ज्यादा जोर दिखाई देता है।
- शास्त्रीय साहित्य के इतिहास में गुप्तकाल एक उज्जवल अध्याय है।
- महाकवि भास ने अपने तेरह नाटकों की रचना गुप्तकाल में ही की ।
- शूद्रक द्वारा रचित नाटक मृच्छकटिक अर्थात माटी की खिलौना गाड़ी जिसमें निर्धन ब्राम्हण के साथ वैश्या के प्रेम का वर्णन किया गया है। यह प्राचीन नाटकों में सर्वोत्तम कृति मानी जाती है।
- गुप्तकाल कालिदास की रचना के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, कालिदास ने इस काल में अभिज्ञानशाकुंतलम की रचना की जो विश्व की उत्कृष्टम रचना है। इसमें राजा दुष्यंत एवं शकुंतला के प्रेम का वर्णन किया गया है।
- अभिज्ञानशाकुंतलम पहली भारतीय रचना है जिसका अनुवाद यूरोपीय भाषाओँ में किया गया है।
- भगवदगीता दूसरी भारतीय रचना है जिसका अनुवाद यूरोपीय भाषा में हुआ है।
- गुप्तकाल में रचित नाटकों की दो प्रमुख विषेशताएं है पहला ये कि सभी नाटक सुखांत हैं, दूसरा ये कि इन नाटकों में स्त्री एवं शूद्र प्राकृत भाषा बोलते हैं जबकि भद्रजन संस्कृत।