- पूर्वी भारत, मध्य एवं दक्कन में मौर्य साम्राज्य के विघटन के बाद ब्राम्हण वंश जैसे- शुंग,कण्व एवं सातवाहन वंश सत्तासीन हुए।
शुंग वंश :-
- मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या करके इसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में मगध में शुंग वंश की नीव डाली।
- पुष्यमित्र शुंग ब्राम्हण जाति का था। शुंग शासकों ने अपनी राजधानी विदिशा को बनाया।
- पुष्यमित्र शुंग ने हिन्द यूनानी शासक मिनांदर को पराजित किया था।
- पतंजलि ने पुष्यमित्र शुंग को अश्वमेध यज्ञ करवाया था।
- भरहुत स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने करवाया था।
कण्व वंश :-
- वासुदेव ने अंतिम शुंग शासक देवभूति की हत्या करके मगध में कण्व वंश की स्थापना 73 ईसा पूर्व में की।
- कण्व वंश का अंतिम शासक सुशर्मा हुआ।
सातवाहन वंश :-
- कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मा की हत्या करके सिमुक ने सातवाहन वंश की स्थापना की।
- आरंभिक सातवाहन शासक महाराष्ट्र में थे, इसके बाद धीरे धीरे अपनी सत्ता का विस्तार कर्नाटक एवं आंध्र क्षेत्र में किया।
- सातवाहनों के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी शक थे, जो दक्कन एवं पश्चिमी भारत में राज करते थे।
- शकों ने कई बार सातवाहनों को पराजित किया लेकिन सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णि ने शकों को पराजित कर खोया हुआ वैभव वापस प्राप्त किया।
- गौतमीपुत्र शातकर्णि ने क्षहरात वंश का नाश किया क्यूंकि उसका शत्रु नहपान इसी वंश का था।
- गौतमीपुत्र शातकर्णि का साम्राज्य मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक एवं आंध्र तक विस्तृत था।
- गौतमीपुत्र शातकर्णि का उत्तराधिकारी वसिष्ठिपुत्र पुलमायिन हुआ इसने राजधानी आंध्रप्रदेश में गोदावरी के तट पर अवस्थित पैठन (प्रतिष्ठान) को बनाया।
- शकों ने कोंकण समुद्र तट एवं मालवा को सातवाहनों से जीत लिया, शक शासक रुद्रदामन प्रथम ने सातवाहनों को दो बार पराजित किया लेकिन वैवाहिक सम्बन्ध के कारण सातवाहनों का नाश नहीं किया।
- बाद के काल में सातवाहन शासक यज्ञश्री शातकर्णि ने कोंकण एवं मालवा को शक शासकों से वापस ले लिया।
- सातवाहन काल में शिल्प एवं वाणिज्य में तीव्र विकास के कारण शिल्पियों एवं वणिक दोनों की स्थितियों में सुधार हुआ तथा इन्होंने बौद्ध धर्म के लिए उदारतापूर्वक दान दिए।
- सातवाहन काल में शिल्पियों में गंधिकों का नाम बार-बार आया है, ये इत्र बनाने वाले शिल्पी थे बाद में सभी दुकानदारों के लिए यह शब्द प्रयुक्त होने लगा।
- सातवाहनों में मातृतन्त्रात्मक ढांचे का आभास मिलता है क्यूंकि राजाओं के नाम माताओं के नाम पर रखने की प्रथा थी जैसे गौतमीपुत्र, वसिष्ठिपुत्र आदि। लेकिन सातवाहन राजकुल पितृतन्त्रात्मक था क्यूंकि राजसिंहासन का उत्तराधिकारी पुत्र होता था।
- सातवाहन शासकों ने चांदी, तांबा, सीसा, पोटीन एवं कांसे की मुद्राओं का प्रचलन किया लेकिन सोने की मुद्रा जारी नहीं की।
- सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी एवं लिपि ब्राम्ही थी। इसी भाषा एवं लिपि में इनके सभी अभिलेख लिखे गए हैं।
- सातवाहनों ने ब्राम्हणों एवं बौद्ध भिक्षुओं को कर मुक्त ग्रामदान देने की प्रथा आरम्भ की ।
- सातवाहन काल में दान में दिए आबाद भूमि एवं ग्राम में राजकीय अधिकारियों का हस्तक्षेप नहीं होता था इस प्रकार राज्य के अंतर्गत स्वतंत्र क्षेत्र स्थापित हो गए।
- सातवाहन राज्य में जिलों को आहार कहा जाता था जो अमात्य या महामात्य के नियंत्रण में होता था।
- सेनापति प्रांत का शासनाध्यक्ष या गवर्नर होता था।
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन का कार्य गौल्मिक करता था जो एक सैनिक टुकड़ी का प्रधान होता था।
- सातवाहन शासकों ने बौद्ध भिक्षुओं को ग्राम दान देकर बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया। इनके राज्य में बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का प्रचलन ज्यादा था।