प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

 धर्मग्रंथों से मिलने वाली जानकरियाँ 
वेद: 
  • वेदों का संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने किया। वेद चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। भारतीय परम्परा वेदों को ईश्वरीय रचना मानती है।
ऋग्वेद:  
  • ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त, 10462 ऋचाएं हैं।
  • इस वेद से आर्यों के राजनीतिक प्रणाली और इतिहास की जानकारी मिलती है। 
  • ऋग्वेद का पाठककर्ता होतृ नाम से जाना जाता है।
  • विश्वमित्र द्वारा रचित गायत्री मंत्र का वर्णन ऋग्वेद के तीसरे मंडल में  है, जो कि सूर्य देवता सावित्र को समर्पित है।  
  • सोम नामक देवता का वर्णन 9वें मंडल में किया गया है। ऋग्वेद में हस्तलिखित ऋचाओं का वर्णन 8वें मंडल में किया गया है इनको खिल नाम से जाना जाता है। 
  • ऋग्वेद के 10वें मंडल में पुरुषसूक्त का वर्णन किया है जिसके अनुसार वर्ण चार होते हैं - ब्राम्हण, क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र। वामनावतार के तीन पगों की कहानी का वर्णन ऋग्वेद में ही किया गया है। 
  • इसी वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं का वर्णन किया गया है।
यजुर्वेद: 
  • सस्वर पाठ के लिए मन्त्रों और बलि के समय जिन नियमों का पालन किया जाता है उनका संकलन यजुर्वेद में किया गया है।
  • इस वेद में यज्ञों के समय अपनाये जाने वाले नियम, एवं विधि विधानों का संकलन मिलता है। यजुर्वेद गद्य एवं पद्य दोनों शैलियों में लिखा गया है।
सामवेद: 
  • इस वेद में यज्ञ के समय गाये जाने वाले मन्त्रों का संकलन है,इस वेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है। पाठककर्ता - उद्रातृ
अथर्ववेद: 
  • यह वेद सबसे बाद में लिखा गया, इसकी रचना अथर्वा ऋषि द्वारा की गयी इसमें लगभग 6000 पद्य हैं। 
  • इस वेद में सामान्य मनुष्यों के विचारों और अंधविश्वासों का विवरण मिलता है। 
  • पृथ्वीसूक्त अथर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त है, इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों जैसे- गृह निर्माण, कृषि उन्नति, विवाह, शाप, वशीकरण आदि का वर्णन है।
  • अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति कि पुत्रियां बताया गया है। एवं इस वेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा बताया गया है।
वेदांग: 
  • वेदांगों की रचना वेदों को भलीभांति समझने के लिए की गयी। वेदांगों की संख्या 6 है: - शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद।
पुराण:
  • पुराणों के रचयिता लोमहर्ष या इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। पुराणों की कुल संख्या 18 है। 
  • पुराणों में भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का क्रमबद्ध विवरण मिल जाता है अतः ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। 
  • सबसे प्रचीन और प्रामाणिक मत्स्य पुराण है। 18 पुराणों में से केवल 5 पुराणों में ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है- मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राम्हण, भागवत। 
  • पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गए हैं। प्राचीन काल में शूद्र एवं स्त्रियों को पुराण पढ़ने की अनुमति नहीं थी, केवल मंदिरों में पुजारी द्वारा किये पाठ को सुन सकते थे।
  • विष्णु पुराण का सम्बन्ध मौर्य वंश से है। 
  • मत्स्य पुराण का सम्बन्ध आंध्र सातवाहन वंश से है।
  • वायु पुराण का सम्बन्ध गुप्त वंश से हैं।
अन्य ग्रंथों से मिलने वाली जानकारियाँ
  • स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुयी स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है, जिसमें जुआ और शराब की भांति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है।
  • शतपथ ब्राम्हण में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी बताया गया है, प्राचीन इतिहास के स्रोत के रूप में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राम्हण का स्थान है। 
  • स्मृतिग्रंथों से सबसे प्राचीन और प्रामाणिक मनुस्मृति मानी गयी है, यह शुंग काल का मानक ग्रन्थ है। नारद स्मृति गुप्त युग की जानकारी प्रदान करता है।
  • जातक में बुद्ध के पूर्वजन्म की कहानियों का वर्णन है। हीनयान का प्रमुख ग्रन्थ "कथावस्तु" है, जिसमें महात्मा बुद्ध के जीवन चरित का वर्णन अनेक कथानकों के साथ किया गया है।
  • जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास "कल्पसूत्र" से ज्ञात होता है। जैन ग्रन्थ "भगवती सूत्र" में महवीर के जीवन कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है।
  • अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) हैं। यह पुस्तक 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित की गयी है। इससे मौर्य काल की जानकारी मिलती है।
  • संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से सबसे पहले लिखने का प्रयास कल्हण ने किया। कल्हण ने राजतरंगिणी पुस्तक की रचना की जिसका सम्बन्ध कश्मीर के इतिहास से है ।
  • अली अहमद द्वारा लिखित पुस्तक चचनामा में अरबों की सिंध विजय का वृत्तांत वर्णित है।
  • संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक "अष्टाध्यायी" की रचना पाणिनि ने की। इससे मौर्य काल के पहले एवं मौर्यकालीन राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन मिलता है।
  • कत्यायन द्वारा रचित गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रन्थ है, इससे भारत पर होने वाले यवन आक्रमण के बारे में जानकारी मिलती है।
  • पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के राजपुरोहित थे, इनके द्वारा रचित महाभाष्य से शुंगों के इतिहास की जानकारी मिलती है।
विदेशी यात्रियों से प्राप्त होने वाली जानकारी  

यूनानी रोमन लेखक: 
  • टेसियस: यह ईरान का राजवैद्य था। भारत के सम्बन्ध में इसके विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।
  • हेरोडोट्स: इसे इतिहास का पिता कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक "हिस्टोरिका " में पाचंवी शताब्दी ईसा पूर्व के भारत-फारस (ईरान) के सम्बन्ध का वर्णन किया है। परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है।
  • सिकंदर के साथ आने वाले लेखकों में निर्याकस, आनेसिक्रटस तथा ऑस्टियोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं।
  • मेगास्थनीज : यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था, इसने अपनी पुस्तक "इंडिका" में मौर्य युगीन समाज एवं  संस्कृति के विषय में लिखा है।
  • डाइमेकस: यह सीरियन नरेश एण्टियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था, इसका विवरण भी मौर्य युग कि जानकारी प्रदान करता है।
  • डायोनिसियस: यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था जो अशोक के दरबार में आया था।
  • टॉलमी: इसने दूसरी शताब्दी में "भारत का भूगोल" नामक पुस्तक लिखी।
  • प्लीनी: इसने प्रथम शताब्दी में "नेचुरल हिस्ट्री" नामक पुस्तक लिखी । इसमें भारतीय पशुओं, पेड़ पौधों, खनिज पदार्थों आदि के बारे वर्णन किया गया है।
  • पेरिप्लस ऑफ़ द इरिथ्रियन सी: इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है, यह लेखक करीब 80 ईस्वी में हिन्द महासागर कि यात्रा पर आया था, इसने उस समय के भारत के बंदरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।
चीनी लेखक :
  • फाहियान : गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में फाहियान आया था एवं 14 वर्षों तक भारत में रहा। अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति का वर्णन किया है। इसने मध्यप्रदेश कि जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है।
  • संयुगन: यह चीनी लेखा 518 ईस्वी में भारत आया एवं तीन वर्षों कि यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित कीं।
  • ह्वेनसांग : यह चीनी यात्री हर्षवर्धन के काल में भारत आया था। यह चीन से 629 ईस्वी में चला और एक वर्ष के पश्चात भारतीय राज्य कपिशा पहुंचा। यह 15 वर्षों तक भारत में रुका इसके बाद चीन लौट गया। इसके आगमन का उद्देश्य नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करना एवं बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने आया था। इसकी यात्रा का विवरण सि-यू-की नामक ग्रन्थ में है। इसने हर्षकालीन समाज, धर्म, संस्कृति के बारे में लिखा। इसने अपने विवरण में बताया की सिंध का राजा शूद्र था।
  • इत्सिंग: यह चीनी लेखक 7वीं शताब्दी के अंत में भारत आया। इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया ।
अरबी लेखक :
  • अलबरूनी: यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गयी उसकी कृति "किताब-उल-हिन्द" या "तहक़ीक़-ए-हिन्द" (भारत की खोज) आज भी इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान,कीमिया, रीति रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार तौल तथा माप विधियों आदि का वर्णन इसमें किया गया है।
  • इब्नबतूता: इस अरबी यात्री ने अरबी भाषा में यात्रा वृत्तांत "रिहला" लिखा। इसमें 14वीं शताब्दी के भारतीय उपमहाद्वीप के सम्बन्ध में सामाजिक सांस्कृतिक जीवन से जुडी रोचक जानकारियाँ प्राप्त होती है। इब्नबतूता 1333 ईस्वी में दिल्ली पहुंचा तो इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे दिल्ली का काजी (न्यायाधीश) नियुक्त कर दिया था।