जिस काल में मनुष्य की घटनाओं का कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है उसे प्रागैतिहासिक काल के नाम से जाना जाता है।
मानव विकास का वह काल जिसका विवरण लिखित रूप में उपलब्ध है ऐतिहासिक काल के नाम से जाना जाता है।
आद्य ऐतिहासिक काल उस काल को कहते हैं जिस काल में लेखन कला का प्रचलन था लेकिन उस समय के लेखों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका ।
इस धरती पर आज से लगभग 30 से 40 हजार वर्ष पहले ज्ञानी मानव (होमोसेपियंस) का प्रवेश हुआ।
पुरापाषाण काल के मानव की जीविका का मुख्य आधार शिकार था और मनोरंजन का साधन भी।
पुरापाषाण काल में ही मानव ने आग का अविष्कार किया जबकि पहिये का अविष्कार मानव द्वारा नवपाषाण काल में किया गया ।
मनुष्य नवपाषाण काल से स्थायी निवास करना शुरू कर दिया एवं कुत्ते को सर्वप्रथम पालतू बनाया ।
मनुष्य ने सबसे पहले तांबा धातु का प्रयोग किया एवं पहला मनुष्य द्वारा निर्मित औजार कुल्हाड़ी था जो अतिरपक्कम नामक स्थल से प्राप्त हुयी।
कृषि का अविष्कार नवपाषाण काल में हुआ। प्रागैतिहासिक अन्न उत्पादक स्थल मेहरगढ़ पश्चिमी बलूचिस्तान में अवस्थित है। कृषि के लिए अपनायी गयी सबसे प्राचीन फसल गेंहू (पहली फसल) एवं जौ थी। लेकिन मनुष्य द्वारा प्रयुक्त पहला अनाज चावल था।
कृषि का पहला साक्ष्य मेहरगढ़ से प्राप्त हुआ। कोल्डिहवा नामक स्थल का सम्बन्ध चावल के प्राचीनतम साक्ष्य से है।
पल्लावरम नामक स्थान पर प्रथम भारतीय पुरापाषाण कलाकृति की खोज हुयी थी ।
भारत में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औजार स्फटिक (पत्थर) के बने थे।
राबर्ट ब्रूस फुट पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1863 ईस्वी में भारत में पुरापाषाणकालीन औजारों की खोज की।
भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो था, सिंधी भाषा में जिसका अर्थ है "मृतकों का टीला"।
असम का श्वेतभ्रू गिबन भारत में पाया जाने वाला एक मात्रा मानवाभ कपि है।
इनामगांव ताम्रपाषण युग की एक बड़ी बस्ती थी, इसका सम्बन्ध जोरवे संस्कृति से है।
भारत में शिवालिक की पहाड़ी से जीवाश्म के साक्ष्य का प्रमाण मिला है।
भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारी रिजले प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने प्रथम बार वैज्ञानिक आधार पर भारत की जनसँख्या का प्रजातीय विभेदीकरण किया ।